“करे केहू भरे केहू”. पुरान कहावत हऽ अब एकर टटका उदाहरण सामने आइल बा. घोटाला करे वालन के त पता ना का होई बाकिर आम आदमी के मोबाइल पर बतियावल जरुरे महँग होखे जा रहल बा. “खेत खइलसि गदहा, मार खइलसि जोलहा” वाला हाल बा. बाकिर हमनी के हाल त उहे बा कि “आपन छँवड़ी नीमन रहीत त बिरान पाड़ीत गारी ?” “जइसन कइल हो कुटुम्ब वइसन पइल हो कुटुम्ब”. अब रोवत काहे बाड़ ? जनता के चुनल सरकार हिय अब जनता के जतना सरका लेव !
मकर संक्रान्ति बीतते लगन के मौसम शुरु हो गइल बा. लगन शब्द त लग्न के बिगड़ल रुप हऽ बाकिर व्यावहारिक रुप से एकत मतलब हो गइल बा लऽ गनऽ. बेटी वाला दहेज गिनत बा, बेटहा तिलक. बाकिर बेटहा सगरी गिनल धन अपने लगे ना राख लेव. उहो गनत रहेला बेर बेर. कुछ नाच वाला, कुछ बाजा वाला, कुछ गहना कपड़ा वाला, ओकरे बाद गाड़ी बस वाला. सभका के साटा पर गनते रहेला.
सुनले रहीं कि “नानी के धन, जजमानी के धन, आ बेइमानी के धन फले ना”. शायद दहेजो के धन केहू का लगे रुके ना, दहत जाला जेने ढाल मिले. एहिजा ढाल ढलुआ के कहल जा ता, तलवार वाला ढाल के ना. अब ढाल जेने ढर जाव. जनतो शायद एही तरह वोट का समय कवनो तरफ ढर जाले बिना सोचले समुझले कि आगा चल के का होखे वाला. बाद में पता चलेला कि “पड़लन राम कुकुर का पाले, खींच खाँच ले गइलन खाले”.
सोचत बानी कि लोग कहत होखी कि ई अनेरे अतना बतकुच्चन कइले रहेला. जरुरे अनेरिया आदमी होखी जेकरा लगे दोसर कवनो काम नइखे. बाकिर का बताई कि अनेरिया होखल नीमन, अनेरिया होखल ना. अब रउरा पूछब कि अनेरिया आ अनेरिया में का फरक होला ? उहे जवन “कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय, ये खाए बउराय नर, वो पाये बउराय” में होला. एक अनेरिया ऊ जवन अनेरे एने से ओने बउरात रहेला, दोसरे ऊ जे अपना अनेर से लोग के बउरवले रहेला. अब देखीं, कइसे एगो नुक्ता के हेर फेर से खुदा जुदा हो गइले. अनेरे आ अनेर में फरक बा. अनेरे मतलब बिना कारण, बिना मतलब. आ अनेर ऊ जे अन्हेर होला, अत्याचार होला, गलत होला. त एक अनेरिया ऊ जे अपना घोटाला से अनेर कर के राखि देला, दोसर अनेरिया ऊ जे एह अनेरिया का चलते अपना अनेरियोपन में काम के बहाना खोज लेला. रउरे बताईं कि कवन अनेरिया नीमन.
अब नीमन से एगो भोजपुरी कहावत याद आ गइल, “नीमना घरे नेवता दिहल”. मतलब कि एगो नीमन उहो होला जे नीमन ना होखे बाकिर ओकरा के बाउर कहे के हिम्मत केहू में ना होला. अब वइसनका आगि के केहू खोर देव त इहे नू कहल जाई कि नीमना घरे नेवता दिहले बाड़ऽ, अब झँउसा ओकरा लहोक में. अब फेर सोचत बानी कि नेवतो त दू तरह के होला. एगो ऊ जे केहू के बोलावे खातिर नेवतल जाला, दोसर ऊ जे केहू के नेवतला पर ओकरा किहाँ चहुँप के नेवता का रुप में दिहल जाला. त अब जब नीमन घरे नेवता देइये दिहलऽ त ऊ अब नेवता पुरावे अइबे करी तोहरो घरे. अब ओकर नेवता पुरावल तोहरा खातिर पूरा पड़ जाव त अलगा बाति बा. देखतानी कि एह बतकुच्चन का फेर में हमार एगो नेवता छूटल जात बा, चलत बानी. फेर भेंट होई.