देस, समाज आ सन्धिदूत…

by | Nov 2, 2023 | 0 comments

– डॉ अशोक द्विवेदी

‘‘पहिले में आ आजु में एगो मूलभूत अन्तर ई आइल बा कि अतीत में,अत्याचार के नायक होत रहे. पृथ्वी पर संत्रास – शोषन के वातावरण लउके त, ई मालूम रहल करे कि एकर करवइया के बा ? कर्त्ता का मालूम रहला के कारन के नष्ट कइल आसान होत रहे !

आजु उल्टा बा. आजु पीड़ा बा, कुण्ठा बा, उत्पीड़न बा, असंख्य बुराई बा. दिल के दौरा पड़त बा, मानव मछरी नियर उलट जात बा. दाँत पीसत-पीसत मुँह टेढ़ हो गइल, बाकिर एह मानसिक तनाव के ऊर्जा स्रोत कहाँ बा? मालूम नइखे ! आजु पृथ्वी पर विद्यमान शासन- व्यवस्था बड़ी तेजी से बदल रहल बा. ईहो हो सकेला कि काल्ह सउँसे संसार एक आदमी का मुट्ठी में आ जाय आ ईहो सम्भव बा कि एक- एक गाँव में एक -एक गो राष्ट्रपति बइठ जासु !

भारत में त जातिए राष्ट्र होखे वाली लागति बा ! हरेक जाति में राष्ट्रपति पैदा हो गइल बाड़न ! खाली भूमि के बँटवारा आ अधिकार के स्थापना भर विलम्ब बा. हो सकेला मानवता विज्ञान से तंग आके, ओहके नष्ट कइ दे आ फिर लाठी -गोजी का समय में लवटि जाय !’’

– आनन्द सन्धिदूत ( 1992 , पहिल काव्य संग्रह ‘एक कड़ी गीत के’ के भूमिका में )

आजु राष्ट्र आ ओकरा चेतना के लेके जइसन राजनीतिक वातावरण बनल या बनावल जा रहल बा, ओके लेके सोचल-बिचारल, साहित्य लिखे-पढ़े आ ओपर आलोचन-विमर्श करे वाला रचनात्मक ( बुधिगर – संवेदनशील,सुधी – सहृदय) लोगन के जिमवारी बा. कवि अपना समय सन्दर्भ का साथे-साथ भविष्य देखेला आ आपन रचनात्मक जिमवारी समझि के, ऊ समाज के सचेतो करेला. एह दिसाईं, आनन्द सन्धिदूत खलिसा भोजपुरिए के ना, अउरियो भाषा-समाज लाएक बिचार, आजु से चार दशक पहिले,1992 में प्रगट कर चुकल बाड़न.

राजनीति, अपना स्वारथ आ सत्ता-लिप्सा में कवन आ कइसन अधातम ना करवावे ! ऊ आपुस में झगरा करवावेले, जातीय उन्माद पैदा करेले, मरवावे-मुआवे तक के साजिश रचेले, ओकरा खातिर राष्ट्र भा देस ले ऊपर ओकर आपन सत्ता, आपन वर्चस्व महत्व राखेला. पुत्र-पुत्री,भाई-भतीजा आ रिश्तेदार से ऊपर चढ़ि के जातीय गोलबन्दी के गुणा-गणित करत ऊ समाज के आपुसी मिल्लत आ मानवी नेह-नाता के छिन्न-भिन्न करे में तनिको ना हिचकिचाय !

आजु देश में अइसने स्थिति बनावल जा रहल बा ! बड़की सत्ता पावे भा कब्जियावे वाला ध्येय के पूर्ति खातिर, राष्ट्र आ राष्ट्र हित चिन्ता के बलि चढ़ाइ के, कहल गइल उक्ति — ‘सर्वजन सुखाय-सर्वजन हिताय’ वाला सगरो मान-मूल्य बदलल जा रहल बा. फेरु एक बेर अन्ध-सपन-लासा का जातीय गोलियाँव वाला उन्मादी पाँसा फेंकल जा रहल बा. उपराँ अपना कथन में, आनन्द सन्धिदूत एही ‘लाठी – गोजी’ का समय का ओरि इशारा कइले बाड़े !

भोजपुरिया लोक आ ओकर मन ‘परहित’ के धरम वाला हवे, ‘परपीड़न’ के अधम करम मानत ई लोक अपना संसार में च्यूँटी- चिरई सबकर चिन्ता करेला ! कम्मे सही, ढेर लोग अबहियों बाड़े, जे ऊर्जा के दाता सुरुज नरायन के विनय भाव से जल ढारेले, गांछ-बिरिछ, जलसोत, नदी, पहाड़ हरेक दाता का आगा माथे नवाइ के कृतज्ञ भाव परगट करेले. त का एह लोक के मूल सोभावे बदलि जाई ? सरब हित का बजाय, खाली आपन हित सोचाई ! उपभोगवादी कथित पच्छिमी प्रगतिशीलता-आधुनिकता में, एह लोकसंबेदन का लतर के झउँसि दिहल जाई ? एकर माने ई होई कि भौतिक पद, सुख-सुबिधा भोगे वाला, बिघटन के बीया बोवे वाला एह राजनीतिक नेतवन के जीत हो जाई !! अधिकार आ भूँइं पर कब्जा खातिर सब आपुसे में कटि-मरि के स्वाहा हो जाई ?

उत्सव-संस्कृति आ स्वस्थ जीवन-परम्परा वाला एह लोक के बनाव-बिनाव के तूरे आ छिया-बिया करे वाला, खुदे बहि -बिला जइहें स’, हम त ईहे मनाइब ! सिरजन करे वाला के जय आ बिधंस के बीया बोवे वालन के पराजय होखे ! सुधी, सहृदय, संबेदन से भरल गुनी -ग्यानी , साहित्य -कला- कर्मी लोग त अरथवान भाव-सन्तुलन आ सुघराई के संयोजन करेला — पृथिवी का हर रूप-कुरूप, अरूप पर सोचे -बिचारेला , ओकर चित्र उरेहेला. रचनाधरमी खातिर संसार में, जेतना फूल पतई जरूरी बा, ओतने काँट-कूस.

मीठ-तीत फल का साथ-साथ, प्रकृति भाँगो-धतूर पैदा कइले बिया ! प्रकृति का एह भाव-मुद्रा आ सन्तुलन में रचनात्मकता छिपल बा ! पृथिवी आ प्रकृति के भावलोक में जनमे-जिये वाला हर जीव के विशेषता आ महत्व बा ! सबके मिलाइये के सम्पूर्णता बनेले ! कवि -लेखक के दृष्टि भेद-भाव वाली ना होखे के चाहीं. स्वतंत्र चेता ऋषि, सन्त आ कवि सुभावे से संबेदनशील आ लोकधर्मी होला — जड़ता , अज्ञान, अन्याय, शोषन आ अमानवीय सत्ता-व्यवस्था के आलोचक आ विरोधी होला ! ऊ कवनो खूँटा से बन्हाय ! आनन्द के कवि कवनो ‘वाद’ पन्थ आ ‘खेमा’ से बन्हाइल ना रहे !

एही से उनका कविता आ लेखन में लोकधर्मी आस्था, विश्वास, जीवन-संस्कृति का साथ साथ जड़ता, नकारात्मकता, अन्याय आ शोसन का खिलाफ बेबाक प्रतिरोधी स्वर बा ! एह अंक में (भोजपुरी दिशाबोध के पत्रिका पाती के 102-103वाँ अंक) दिहल गइल उनका रचना-संसार के झाँकी आप सभके अपना भाव-लोक में उतरे खातिर न्योतत बा !



अँजोरिया संपादक का ओर से क्षमायाचना कि अबकी बेर पत्रिका के हर रचना अलग से डाले में दिक्कत आ रहल बा. पूरे पत्रिका रउरा डाउनलोड क के पढ़ लीं. कारण बा हमार लैपटॉप साथ नइखे देत.

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अँजोरिया के भामाशाह

अगर चाहत बानी कि अँजोरिया जीयत रहे आ मजबूती से खड़ा रह सके त कम से कम 11 रुपिया के सहयोग कर के एकरा के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराईं.
यूपीआई पहचान हवे -
anjoria@uboi


सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
anjoria@outlook.com
पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.


अबहीं ले 11 गो भामाशाहन से कुल मिला के छह हजार सात सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)
अनुपलब्ध
18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया

(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(11)

24 अप्रैल 2024
सौरभ पाण्डेय जी
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


संस्तुति

हेल्थ इन्श्योरेंस करे वाला संस्था बहुते बाड़ी सँ बाकिर स्टार हेल्थ एह मामिला में लाजवाब बा, ई हम अपना निजी अनुभव से बतावतानी. अधिका जानकारी ला स्टार हेल्थ से संपर्क करीं.
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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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