– गणेश नाथ तिवारी ‘विनायक’
घर से बहरी निकलते भोजपुरिया लोग भोजपुरी के ताखा पर रख देला. भोजपुरी पढ़े, लिखे आ बोले में बहुते लजाला लोग, अपने से अपना के हीन मानेला लोग.
अगर दस गो भोजपुरिया आ दूइयो गो दोसरा भाषा के लोग बा त भोजपुरिया लोग उहाँ भोजपुरी ना बोली. काहे कि उनुका अपना लोग से बेसी चिंता ओह दू लोग के बा कि ऊ लोग भोजपुरी ना बुझी एहसे हिंदी भा अंग्रेजी बोलल सही रही.
बाकिर ओहिजे दस आदमी का बिचे उहे दुनो लोग अपने भाषा में – तमिल, तेलुगु, मलयालम, पंजाबी, बंगाली, भा कवनो दोसर – बतियावत रही.
भोजपुरिया गायक, कवि, लेखक लोग मंच से भोजपुरी में पढ़ी भा गाई, बाकिर बीच-बीच के बतकही हिंदी में छउँकत रही. एह लोग के ई माने में काहे दिक्कत होला कि जे एह सभ के गीत, कविता, कहानी सुनल-बुझल ऊ लोग एह लोगन के अउरिओ बात बुझिए ली.
फेसबुक-ह्वाट्सअप पर भोजपुरी गाना के लिंक आवेला बाकिर ओकरा साथे जवन बतकही लिखल रहेला ऊ हिंदी भा अंग्रेजी भा दुनू में होला.
हे देवी-देवता, हे पुरखा-पुरनिया, हे सरसती माई, भोजपुरिया लोग के भोजपुरी में लिखे-पढ़े, नीमन गीत गावे-सुने के बुद्धि दिहीं ! जे भोजपुरी में गावऽता, बाकिर भोजपुरिए लोग का सोझा ओकर के व्याख्या हिंदी में करत बा, ओह लोग के अन्हरिया से काढ़ि के अंजोरा ले आईं.
भोजपुरी भाषा से जुड़ल हर एक चीज के हिंदी भाषा में कइसे लिखे के बा, ई एगो आर्ट ह आ भोजपुरी भाषी लोग एह आर्ट में बड़ा माहिर आ शातिर खेलाड़ी होला.
अपना काम से संतुष्ट होखीं. कतना लोग देखल-पढ़ल-सुनल ई रउरा काम के मपना हो सकेला, बाकिर कुल्ह इहे ना ह.
भोजपुरी भाषा खातिर बेहतर चाहत बानी त रउवा अपना दिमाग से, भोजपुरी के नाँव प घोचाह कमाए, बड़का सम्मान पावे, लाइक, सब्स्क्राइबर,भ्यू बढ़ावे वाला लालच से बहरी निकल के बेहतर करे के पड़ी.
रउआ गैर भोजपुरियन से कवनो भाषा में बतियाईं एहसे केहू के कवनो दिक्कत नइखे बाकिर जब रउआ जानऽतानी कि सामने वाला भोजपुरिया हवे, तब ओकरा से भोजपुरिए में बतियाईं, भा बतियावे के कोशिश करीं. ओकरा बाद अगर ऊ आदमी चाहे तबहिएं आपन भाषा बदलीं.
अइसे कइसे भोजपुरी बाची –
बोलीं भोजपुरी, लिखीं भोजपुरी,
रउआ पढब त, बढ़ी भोजपुरी.
भोजपुरी भाषा मे गजबे मिठास बा.
जे ना पढ़ल-लिखल उहो आज निरास बा.
मिल त गइल अंग्रेजी पढ़ि के नोकरी
बाकिर माईभाषा बिना सब बेकार बा.
अंग्रेजी पढ़ि के जे भी गइल समाज मे,
ऊ आजो बंचित बा अपना संस्कार से.
भोजपुरिया लोग आजो गाँव-समाज में बा,
माई-बाबू भाई से भरल पूरा परिवार में बा.
माई के चरण में जवन लोक रस, सुख बा,
ऊ अंग्रेजी के हवा में घूमत घोड़पड़ास बा.
लोकरस के आईं आवाज में बुलंद करीं,
आपन माटी बचावल, आपन पहचान बा.
जवन मजा गोझा लिट्टी आ चोखा में बा.
ओकरा आगे बर्गर पिज्जा सब बेकार बा.
पढ़ीं लिखीं आ बोलीं भाषा भोजपुरी
हमरा त अपना माईभाषा पर नाज बा.
- गणेश नाथ तिवारी ‘विनायक’, सउदी अरबिया से
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