भोजपुरी भाषी के मातृभाषाई के अस्मिताबोध – 4

- डॅा० जयकान्त सिंह 'जय' भाषिक, सांस्कृतिक आ बौद्धिक गुलामी एतना ना मेहीं (बारीक) चीज ह कि एकरा गुलाम का पतो ना चले कि ऊ एह सबके कब से गुलाम…

भोजपुरी भाषी के मातृभाषाई के अस्मिताबोध – 3

- डॅा० जयकान्त सिंह 'जय' वैदिककाल होखे भा पौराणिककाल, ऐतिहासिक काल होखे भा आधुनिक काल, भोजपुरी भाषी जनसमुदाय राष्ट्र अउर राष्ट्र के भाषा-संस्कृति, सम्मान-स्वाभिमान आ उत्थान-पहचान खातिर कवनो तरह के…

भोजपुरी भाषी के मातृभाषाई के अस्मिताबोध – 2

- डॅा० जयकान्त सिंह 'जय' भारतीय संविधान के आठवीं अनुसूची में मौजूद बाइसो भारतीय भा गैर भारतीय भाषा सब में हिन्दी, उर्दू आ संस्कृत पर आगे चर्चा होई. बाकी अनइसो…

बिहार विधानसभा चुनाव का बहाने गपशप

- डॅा० जयकान्त सिंह 'जय' बिहार में विधानसभा के चुनावी बिगुल फूँका गइल बा. भीड़भाड़ का चलते मतदान केंद्र पर अपना मताधिकार के प्रयोग से भरसक बाँचे के प्रयास करे…

देशनिकाला

- डॅा० जयकान्त सिंह 'जय' रबीस जापान में कम्प्यूटर इंजीनियरिंग के पद पर काम करत रहस. उनका उहँवा एगो जापानी लइकी से नेह-सनेह बढ़ल आ एक दिन दूनो जने बिआह…

भोजपुरी भाषी के मातृभाषाई अस्मिताबोध – 1

- डॅा० जयकान्त सिंह 'जय' 'अस्मिताबोध' ओह सग्यानी-स्वाभिमान का होला, जेकरा दिल-दिमाग आ मन-मिजाज में अपना आ अपना पुरखन का उपलब्धियन के लेके मान-गुमान के भाव होखे. एकरा खातिर देश-काल-परिस्थिति…

जयकान्त सिंह के तीन गो कविता – नया आ पुरान

- डॅा० जयकान्त सिंह 'जय' जेठ भाई के निहोरा करऽ जन अनेत नेत, बबुआ सुधारऽ सुनऽ, तूँही ना ई कहऽ काहे होला रोजे रगड़ा । आपन कमालऽ खालऽ, एनहूँ बा…

ईशु स्मृति शोक गीत

चलि गइल छोड़ि कवन देसवा हो बाबू, मिले नाहिं कवनो सनेसवा हो बाबू।। गोदिये से गइल, अवाक् रह गइनीं कवनो ना बस चलल, का का ना कइनी कुहुके करेजवा कलेसवा…

कविता लिखे के लकम

- डॅा० जयकान्त सिंह 'जय' सन् 1976-77 में, जब हम गाँव के प्राथमिक विद्यालय में तीसरा-चउथा के विद्यार्थी रहीं, ओह घरी हर सनीचर के अंतिम दू घंटी में सांस्कृतिक कार्यक्रम…

डॅा० जयकान्त सिंह ‘जय’ के तीन गो कविता

- डॅा० जयकान्त सिंह 'जय' कलाम के शत शत नमन माथ ऊँचा हो गइल दुनिया में भारतवर्ष के सफल परमाणु परीक्षण बा विषय अति हर्ष के देश का ओह सब…